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Friday, June 12, 2009

चालाक पीढ़ी यह अच्छी तरह जानती है,

अरविंद पथिकजी,बिस्मिलजी की नज्म देकर आपने बड़े शानदार ढ़ंग से उन्हें याद किया,यह इस बात का सबूत है कि आप के सामाजिक सरोकार देश के शहीदों के प्रति कितने हैं? यह उम्मीद करना कि हर आदमी शहीदों के प्रति इतनी शिद्दत के साथ जुड़ा होगा,खामयाली के अलावा कुछ नहीं। शहीदों से जुड़कर कोई सौदा मुनाफे का नहीं होता है,चालाक पीढ़ी यह अच्छी तरह जानती है,इसलिए उसे और इस बिकाऊ मीडिया को शहीदों को याद करने की जरूरत क्यूं कर होगी? कोई इनके लिए रोकर अपने कीमती आंसू बरबाद करेगा क्यूं? खैर आपने उनको याद किया,हम आपको याद कर रहे थे? कि गए कहां? चलो इस बहाने आपकी बरामदगी तो हुई।
मकबूलजी ने फना कानपुरी की गजल पेश कर मजा बांध दिया है। वे नैमीशारण्य जा रहे हैं, मेरी शुभकामनाएं। वहां बिजली और पानी की समस्या के समाचार मिल रहे हैं। मानसिक रूप से इस किल्लत को झेलने के लिए तैयार रहें। वैसे दोस्तों की बेहतरीन कंपनी साथ हो तो सब कुछ मज़ा ही देता है। मुनींद्रजी साथ हैं फिर क्या चिंता है? सही चौबे चकल्लस रहेगी।
राजमणीजी ने बढ़िया दोहे पढ़वाए हैं। उनके खजाने में बहुत कीमती सामान है। खूब छांट-छांटकर माल परोसते हैं। उनके लिए लेखकों की डायरेक्ट्री मैंने तैयार कर दी है। जब चाहें ले जाएं। उनसे गुजारिश है कि बहुत दिनों से उन्होंने अपने पिताश्री की गजल ब्लॉग पर नहीं लिखी है। मेरी फरमाइश पर तवज्जों दें। और लोकमंगल को अनुगृहीत करें।
हंसजी गर्मी में कहां सूख गए? कभी सरोवर के पास भी फटको भाई। बिस्मिलजी के लिए एक कता
चमका था जो वे नसीबी सितारा चला गया
गुलशन से बहारों का नज़ारा चला गया
हम देखते ही रह गए आंखें पसारकर
कश्ती से बहुत दूर किनारा चला गया।
पं. सुरेश नीरव

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