१६ अगस्त २०१० को शब्दऋषि पंडित सुरेश नीरव की सद्यह प्रकाशित- सर्वतोष प्रश्नोत्तर शतक- पुस्तक का लोकार्पण गाँधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में शांति प्रतिष्ठान की शांति को तालियों की गडगडाहट के बीच शब्द की महत्ता को ज्योतित करता हुआ और विगत पुस्तक लोकार्पणों की परम्परा को तोड़ता हुआ एक उच्चस्तरीय तरीके से हुआ जिसके शब्दों की पताका बुलंदियों पर लहराने लगी। लोकार्पण का मंच डा० राम गोपाल चतुर्वेदी, डा० विन्देश्वर पाठक, पंडित सुरेश नीरव, ओंकारेश्वर पांडेय, डा० अमर नाथ अमर, प्रो० बलदेव वंशी और डा० मधु चतुर्वेदी से सुशोभित था। रजनीकांत राजू ने मंच पर आसीन विभूतियों का स्वागत व सम्मान शास्त्रीय पद्यति से किया जोकि एक चिरस्मरणीय मंजर देखने को मिला। मंच का संचालन अरविन्द पथिक ने किया। सभागार खचाखच श्रोताओं से भरा हुआ था । सभी ने प्रश्न की प्रासंगिकता और शब्द की महत्ता का विश्लेषण अपने-अपने ढ़ंग से किया। ओंकारेश्वर पाण्डेय ने जहाँ अपनी बुलंद आवाज़ में रचनाकार को ब्रह्म से जोड़ा वहीं डा० अमर नाथ अमर ने शब्द को चिंता और चिंतन पर सहेजा। पद्म भूषण डा० विन्देश्वर पाठक ने तो अपनी गाँधीवादी पोशाक में एक सारगर्वित वक्तव्य दिया और एक विक्रमादित्य गठन का उदघोष कर दिया जिसका नायक पंडित सुरेश नीरव को मनोनीत किया। डा० राम गोपाल चतुर्वेदी ने बताया कि सबसे पहले प्रश्न ही उत्पन्न होता है। प्रष्टा उत्तरदाता से श्रेष्ट होता है और वह हैं पंडित सुरेश नीरव जो इस पुस्तक के रचनाकार भी हैं और प्रश्नकर्ता भी। क्योंकि प्रश्न पहले उठता है उत्तर बाद में। पंडित सुरेश नीरव का वक्तव्य तो शब्द के मोती पिरोकर एक अलग समाज की रचना करता हैचाहे वह प्रश्न के रूप में हो या उत्तर के। इसलिए तो सब चाहे डा० हो या वकील , शिक्षक हो या व्यापारी, साहित्यकार हो या कवि पंडित सुरेश नीरव के मुखारुविंदु से निकले शब्दों को सुनने के लिए ही आते हैं, चाहे उनके प्रश्नोत्तर वक्तव्य के रूप में हों या किताब के। शब्द में कितना आकर्षण है। गुरूजी से मेरा प्रश्न। मैं इस पुस्तक के यशस्वी रचनाकार एवं प्रष्टा सम्पादक श्री नीरवजी को पुनि -पुनि प्रणाम करता हूँ और पालागन करता हूँ। मुझे उनका सान्निध्य मिलता रहे ,
श्रद्धानवत -भगवान सिंह हंस
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