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Wednesday, October 13, 2010

प्रेम ही धर्म है



श्री प्रशांत योगीजी की आध्यात्मिक प्रयोगशाला का दर्शन किया। यह बड़ी दिव्य है। अनुभूति के धरातल पर यथार्थता का दर्शन किया। यही दिव्यालोक है और यही यथार्थ दर्शन है। इस यथार्थता में प्रेम समाहित है जो शाश्वत है, सनातन है और नित्य है। प्रेम ही धर्म है। अहिंसा आदि सब इसके मार्ग हैं । योगीजी आपको बहुत-बहुत बधाई यथार्थ दर्शन के लिए। जय लोकमंगल ।
-भगवान सिंह हंस

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