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Thursday, October 14, 2010

भरत चरित्र महाकाव्य

मुनि जावालि का नास्तिक मत -
नृप का निश्चित था जाना । उसका नहीं कोई बहाना। ।
यह स्वाभाविक है संसार ।व्यर्थ दुःख करहिं हे कुमारा। ।
हंसजी कहते हैं कि मुनि जावालि ने राम से बोला कि राजा का जाना निश्चित था। उनका कोई बहाना नहीं था। संसार में यह स्वाभाविक है। हे कुमार! तुम व्यर्थ दुःख करते हो।
जो प्राणी यहाँ जन्म पाता। वह एक दिन अवश्य मृत पाता। ।
राम!अपना नहीं जग कोई। फिर संताप तुम्हें क्यों होई । ।
जो प्राणी यहाँ जन्म पाता है वह एक दिन अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है। राम! इस संसार में अपना कोई नहीं है। फिर तुम क्यों संताप करते हो।
प्राप्त अर्थ जिसने ही त्यागा। धर्मपरायण होकर भागा। ।
उन्हीं का मैं करता जो शोका। धर्म के नाम पर दुःख लोका। ।
जिसने पाया हुआ धन त्याग दिया, वह धर्मपरायण ही होकर भागा है। मैं उन्हीं का दुःख करता हूँ। संसार में वह धर्म के नाम पर दुःख है।
संतप्त मृत्यु मिले निदाना। अबलोक राख़ पड़ी श्मशाना । ।
पितरों को मिले श्राद्ध दाना। तासु हेतु प्रवृत्त जन नाना । ।
अंत में उसको संतप्त मृत्यु मिलती हैऔर उसकी राख श्मशान में पड़ी दिखाई देती है। पितरों को केवल श्राद्ध व दान मिलता है। इसलिए उनके हेतु नाना लोग प्रवृत्त रहते हैं।
तिन्ह पर करना तनिक विचारा। अन्न का होवे नाश सारा । ।
क्या मृत मनुज करें उपभोगा। क्यों विश्वास करें जग लोगा। ।
राम! इन पर तनिक विचार करो। इससे सारे अन्न का नाश होता है। क्या मरा हुआ मनुष्य उपभोग करता है। इस पर संसारी लोग क्यों विश्वास करते है।
रचनाकार- भगवान सिंह हंस
प्रस्तुतकर्त्ता - योगेश विकास

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