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Saturday, October 16, 2010

श्री मकबूलजी पुनः महफ़िल में

आदरणीय मकबूलजी प्रणाम। आप काफी अरसे के बाद महफ़िल अपनी उम्दा गजल के साथ हाजिर हुए हैं। आपकी गजल बहुत अच्छी लगी। बधाई। प्रणाम।
आदरणीय नीरवजी की गजल बहुत ही बेहतरीन है । आपकी ये लाइन -
संवर के रात की सीपी में मोतियों की तरह ,
सफर को नर्म घरौंदों से निकलती है सहर ।
मुझे बहुत अच्छी लगी। बहुत -बहुत बधाई। नमन ।
डा० नीलम की गजल की निम्न पंक्तियाँ बहुत ही बेहतरीन हैं ,बधाई।
यूँ न चिलमन उठाइए सरे महफ़िल जानां ,
नजर लगेगी जो रुखसार पे न तिल होगा ।
श्री राजमणिजी आपको ढ़ेर सारी बधाई । आपने एक उम्दा गजल कही है। बहुत अच्छी लगी।

योगेश विकास

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