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Friday, October 15, 2010

जान अलिया की ग़ज़ल

जी ही जी में वो जल रही होगी
चाँदनी में टहल रहीं होगी

चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी

सो गई होगी वो शफ़क़ अन्दाम
सब्ज़ किन्दील जल रही होगी

सुर्ख और सब्ज़ वादियों की तरफ
वो मेरे साथ चल रही होगी

-प्रस्तुतित
राजमणि

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