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Thursday, October 14, 2010

शुक्र अस्त होने पर विदा नहीं करानी चाहिए

 शुक्रवार की कथा-
एक समय की बात है, किसी नगर में ब्राह्मण, कायस्थ और वैश्य जाति के लड़कों की आपस में दोस्ती थी. समय से उनका विवाह हो गया. कायस्थ और ब्राह्मण का गौना भी हो गया, परन्तु वैश्य का गौना नहीं हुआ था. तब उसके दोस्तों ने उससे कहा कि मित्र, तुम अपनी स्त्री को गौना कर के घर क्यों नहीं लाते हो? स्त्री के बिना घर कैसा? यह बात वैश्य को जंच गयी. वह जब जाने लगा, तो उसके घरवालों ने कहा कि अभी शुक्र अस्त हो रहा है, अभी मत जाओ, वह ना माना, और चला गया. उसके ससुराल वाले भी आया देख चकराये. उसके आदर सत्कार उपरांत जब उसने अपना आने का उद्देश्य बताया, तो उन्होंने उसे बहुत समझाया, परन्तु उसने एक ना मानी. विवश होकर ससुराल वालों ने विदाई कर दी. वे रथ में जो चले, तो रास्ते में उनके रथ का पहिया टूट गया, और बैल के पैर में भी चोट लग गयी. उसकी पत्नी भी गिर कर घायल हो गयी. रास्ते में उन्हें डाकू मिले, जिन्होंने उनका सारा धन लूट लिया. फ़िर किसी तरह घर पहुंचने पर लड़के को सर्प ने डस लिया, और वह मूर्छित हो गया. वैद्य को दिखाने पर उन्होंने बताया कि वह तीन दिन उपरांत मृत्यु को प्राप्त होगा. जब उसके मित्रों को पता चली, तो उन्होंने बताया कि सनातन धर्म अनुसार शुक्र अस्त होने पर स्त्री को विदा नहीं कराते. यदि यह वापस ससुराल चला जाये, और शुक्र उदय होनेपर वापस आये, तो इसके विघ्न टल सकते हैं. तब सेठ ने ऐसा ही किया. ससुराल में पहुंचने पर उसका विष साधारण उपचार से ही उतर गया, और स्वास्थ्य लाभ करता हुआ, शुक्र उदय होने पर अपने घर स्पत्नीक पहुंचा. फ़िर वे दोनों खुशी खुशी रहने लगे.
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