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Thursday, October 14, 2010

कभी तो याद करोगे मेरे फसाने को

डा.प्रेमलता नीलम
गजल-
 खबर न होने दोगे माना तुम जमाने को
कभी तो याद करोगे मेरे फसाने को

कौन रोकेगा जो बहारों का मौसम होगा
आएंगे भौंरे अपना गीत गुनगुनाने को

तोड़ ली जाती हैं गुलशन से हजारों कलियां
इक इशारे पर किसका हरम सजाने को

सफर में कितने ही मिलते हैं मुसाफिर यों तो
बात किस किसकी रखेंगे न भूल जाने को

कौन रखता है याद मील के पत्थर नीलम
याद करना भी क्या गुजरे हुए ज़माने को।

डाक्टर प्रेमलता नीलम
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