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Saturday, October 16, 2010

भरत चरित्र महाकाव्य


मुनि जावालि का नास्तिक मत -
यदि यहाँ एक का अन्न खाया । चला जाता हो दूज काया । ।
तो राह हेतु श्राद्ध सुहाना । नहिं तोसा उनको बंधवाना । ।
मुनि जावालि ने फिर आगे राम से कहा कि राम ! यदि यहाँ एक का अन्न खाया और दूसरा शरीर से चला जाता हो तो राह हेतु उसे श्राद्ध ही अच्छा लगता है। उनको टोसा नहीं बंधवाया जाता है।
यग्य व पूजन दीक्षा दाना। तजि गृह तम कर ग्रन्थ बताना। ।
बुद्धिमान जन ग्रन्थ बनाएं। दान ओर प्रवृत्त कराएं। ।
अन्धकार समझकर घर को छोड़ दोऔर यग्य, पूजन , दीक्षा -दान आदि करो। ऐसा ग्रन्थ बताते हैं। और बुद्धिमान लोग ग्रन्थ बनाते हैं एवं वे लोगों को इस ओर प्रवृत्त करते हैं।
महामते!तुम करो विचारा। प्रत्यक्ष राज्यपद हि निहारा । ।
फल हेतु न हो पालक धर्मा। राज्य करो यही श्रेष्ठ कर्मा । ।
हे महामते! हे राम! तुम विचार करो। तुम्हें प्रत्यक्ष राज्यपद दिखाई देता है। तुम फल हेतु धर्म के पालक मत बनो। तुम राज्य करो, यही तुम्हारा श्रेष्ठ कर्म है।
सत्पुरुष सुविग्य जन प्रमाना। भरत करते अनुरोध नाना। ।
तुम अभिषेक कराओ रामा। स्वराज्य ग्रहण करो अभिरामा । ।
सत्पुरुष और विज्ञजन इसके प्रमाण हैं। देखो , भरत तुमसे नाना अनुरोध कर रहे हैं। हे राम! तुम अपना राज्य तिलक कराओ। हे अभिराम! तुम अपना राज्य ग्रहण करो। मेरी आपसे यही विनय है
दोहा -जावालि का नास्तिक मत, राम को बहु पिराय।
घूँसा- सा अन्तः लगा, मन ही मन बतराय । ।
मुनि जावालि के नास्तिक मत से राम को बहुत दुःख हुआ। वह राम के अन्तः में घूँसा- सा लगा। राम मन ही मन सोचते हैं।
रचयिता -भगवान सिंह हंस
प्रस्तुति- योगेश विकास

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