भ्रष्टाचार vs अन्ना पर शब्दऋषि पंडित सुरेश नीरवजी ने बहुत ही रोचक एवं शिक्षाप्रद व्यंग्य किया है. देखिये, पंडितजी ने अपने ज्योतिषी परिद्रश्य में वर्तमान को अतीत में लेजाकर भविष्य की कहानी व किस्सों में सुनने-सुनाने तथा कहने की रोचकता सरस बनाने में अपनी एक अनूठी सोच एवं प्रज्ञता का परिचय दिया है. उन्होंने वर्तमान, भूत और भविष्य का एक साथ समन्वय किया है जबकि अभी तो वर्तमान के भगवान अन्ना की लीला का दिग्दर्शन चल ही रहा है.उन्हीं के शब्दों में --
जिसने बहुत लंबे समय से इस भ्रष्टाचार के दैत्य की चाकरी की थी उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक बुढ़ऊ सच्ची-मुच्ची में भ्रष्टाचार–जैसे दैत्य का वध कर सकता है। उसके अज्ञानी चाकरों ने अपने बचकाने कुतर्कों से अन्ना भगवान को काफी परेशान किया।उनके दिमाग पर भ्रष्टाचार का दैत्य सवार था। वे अन्ना भगवान को दैत्य के राज में कहीं बैठने की जगह तक नहीं देना चाहते थे। उन्होंने अन्ना भगवान को जेल में डाल दिया। भगवानों की तो लीला स्थली ही जेल होती है। जैसे कंस की जेल तोड़कर कृष्णजी बाहर आ गए वैसे ही अन्ना भगवान भी बाहर आ गए। और रामलीला मैदान में बैठकर अपनी लीला दिखाने लगे। ऐसे सिद्धपुरुष एवं मनीषी नीरवजी जिन्होंने हमें एक अद्भुत संज्ञान एवं मीठी-सी शैली से अवगत कराया, को मेरे शत-शत नमन. जय लोकमंगल.
भगवान सिंह हंस
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