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Wednesday, November 2, 2011

मंहगाई,गजल और आजादी की लड़ाई

 अरविंद पथिकजी

सुभाष चंद्र बोस के जीवन के अनछुए पहलुओं पर अरविंद पथिक बहुत चौका देनेवाली जानकारियां दे रहे हैं। सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी शीलभद्र याजी की लोहिया और हेडगेवार से हुई बातचीत हमें आज भी सोचने को मजबूर करती है कि क्यों हमारे देश में लोग किसी बड़े उद्देश्य पर भी एक मत क्यों नहीं होते हैं। अपनी ढपली अपना राग का रवैया ही हमारा मूल चरित्र रहा है और शायद रहेगा भी।
लोहिया ने कहा कि मैं सुभाष की मदद नहीं करूंगा।बल्कि उनसे लडूंगा।सुभाष की मदद करने से पावर फारवर्ड ब्लाक के हाथ में चला जायेगा।इस पर शीलभद्र याजी ने कहा कि आज़ादी देश की होगी व्यक्तिगत नहीं। याज़ी लोहिया से लडने को तैयार हो गये।साने गुरूज़ी ने उन्हें पकड लिया।इस पर शीलभद्र याज़ी ने कहा आज से कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से कोई समबमध नहीं रहेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चरित्र और आचरण भी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से भिन्न ना था।त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता केशवराव बलिराम हेडेगेवार से भेंट की और उनसे आग्रह किया कि वे अपने ६०हजार स्वयंसेवकों को क्रांति के इस महासंग्राम में उतारें परंतु हेडेगेवार ने उत्तर दिया ----' इनमें शिशु और अनाडी लोग भी हैं जो क्रांति का सही मतलब नहीं जानते।" कुल मिलाकर वे किसी भी कीमत पर अपने स्वयंसेवकों को क्रांति के लिये उतारने को तैयार नहीं हुए।केवल कीरत पार्टी ने हर तरह का सहयोग देने का वचन दिया।कांगरेस,कम्यूनिस्ट सोशलिस्ट व आर०एस०एस० ने नेताजी को कोई सहयोग नहीं दिया।
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मृगेन्द्र मकबूल

जयलोकमंगल में बहुत उम्दा चीज़ें पढ़ने को मिलीं।  
कैफ़ी आज़मी की ऐतिहासिक गजल को मृगेन्द्र मक़बूल ने बड़े सलीके से प्रस्तुत किया है। यूं तो पूरी गजल ही पायेदार गजल है मगर इन शेरों का तो जबाब ही नहीं है-

जिस तरह हंस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्के-ग़म
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े।


एक तुम कि तुम को फिक्रे-नशेबो-फ़राज़ है

एक हम कि चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े।


मुदत के बाद उसने जो की लुत्फ़ की निगाह

जी खुश तो हो गया मगर आंसू निकल पड़े।


साक़ी सभी को है गमे- तशनालबी मगर

मय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े।

कैफ़ी आज़मी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
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प्रकाश प्रलय
प्रकाश प्रलयजी की रचनाएं देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर की उक्ति को चरितार्थ करवेवाली ही होती हैं।
मेंहगाई
न हंसीं
रोई -----
जाको राखे
साईया ।
मार सके न कोई
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प्रकाश प्रलय कटनी
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सभी को धन्यवाद

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