प्रकाश प्रलयजी,
बड़ी ही मार्मिक और सारगर्भित कविता है आपकी। आपने अपनी कविता में आजके इस बाजारवादी दौर में जिस पुत्र को स्थापित किया है सचमुच में यदि ऐसे पुत्र जीवन में होने लगें तो बूढ़े-मां बाप की नौकर हत्या करके उनका माल लूटकर न भाग पाएं। काफी उम्मीद जगाती कविता है। बधाई हो..पंडित सुरेश नीरव
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