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आप दोनों महान पुरुषों को पहचानते हैं। दोनों ही हमारे प्रणम्यहैं। |
भाई प्रकाश प्रलयजी,
शादियों में जाने की आपकी धमकियां मुझे लगातार मिल रही हैं। मैं बहुत भयभीत हूं।
आप की शब्दिकाओं को पढ़-पढ़कर
मगन हो रहा हूं
धरती पर छाया गगन हो रहा हूं।
पंडित सुरेश नीरव
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