वैश्वानर-गौतम संवाद में यह तथ्य ऐसे उजागर होता है- पुरुष यज्ञ की अग्नि है। वाणी इस अग्नि की समिध् है। वाणी से ही पुरुष सुशोभित होता है। प्राण है इस यज्ञ का धूम्र जो मुख से निकलता है। लाल रंग की जो जीभ है वह इस जीवन यज्ञ की ज्वाला है। नेत्र इस यज्ञ के अंगारे हैं जिसमें कि प्रकाश शरण लेता है। श्रुति यानी जो हम सुनते हैं वह इस यज्ञ की ही चिंगारियां हैं। हम यज्ञ में हैं और यज्ञ हम में है। और जिस यज्ञ का श्रत्विक स्वयं गौतम हो उसकी चमक को समय कैसे बूढ़ा कर सकता है।
सुरेश नीरव के संग्रहः प्रश्नोपनिषद से
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