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Sunday, April 29, 2012

स्वाध्याय के कारण

विश्वामित्र जब ऋषि नहीं हुए थे सिर्फ गाधि के राजा थे तो आखेट करते हुए वे उस जगह पहुंच गए जहां वसिष्ठ का आश्रम था। वसिष्ठ ने विश्वामित्र का और उनके सैनिकों का भरपूर आतिथ्य किया जो कि कामधेनु का ही चमत्कार था। विश्वामित्र वसिष्ठ से कामधेनु मांगते हैं। मगर वसिष्ठ ने कामधेनु देने से मना कर दिया। इस बात पर भीषण युद्ध हुआ। और इसमें वसिष्ठ ने अपने ब्रह्मतेज़ से विश्वामित्र को परास्त कर दिया। विश्वामित्र को इस पराजय से बड़ी आत्मग्लानि हुई और वे धिक बलम् क्षत्रिय बलम ब्रह्मतेजो बलम्..बलम् कहते हुए स्वयं तपस्या में लीन हो गए। और संन्यास के मार्ग पर चल पड़े। मगर वसिष्ठ के प्रति उनके मन में कलुष भाव तब भी समाप्त नहीं हुआ। ऐसा भी उल्लेख है कि विश्वामित्र ने वसिष्ठ के पुत्रों की हत्या भी करवा दी। और उन्हें उत्तेजित करने के तरह-तरह से प्रयास किए। मगर वसिष्ठ ने विश्वामित्र के प्रति न तो कभी कोई अभद्र प्रतिक्रिया दी और न कभी विचलित हुए। वसिष्ठ की विद्वता का प्रभाव इतना व्यापक था कि पूरे देश में उनके सैंकड़ों आश्रम चल रहे थे। और इन आश्रमों में रह रहे साधकों के अहिर्निश तपस्या और स्वाध्याय के कारण मुखमंडल हमेशा अग्नि की तरह दीप्त-प्रदीप्त रहते थे। इन श्रषियों में अब्भक्षी, वायुभक्षी, शीर्षपर्षासन, फलगूलाशन, दांत, जितदोष, जितेन्द्रीय, बालखिल्य, जपहोमपरायण तथा वैखनख-जैसे ऋषि प्रमुख थे। इनमें से कुछ सिद्ध ऋषियों ने शरभंग ऋषि के आश्रम में अपने तपोबल से साक्षात भगवान राम के दर्शन भी किये थे।

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