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Tuesday, June 5, 2012

पर्यावरण दिवस पर एक कविता


आज पर्यावरण-दिवस पर कुछ पंक्तियां जिसे तरह-तरह से सम्मानित कर लोगों ने मुझे प्रोत्साहित किया है आपको सादर भेंट कर रहा हूं-
आज की तरक्की के रंग ये सुहाने हैं
डूबते जहाजों पर तैरते खजाने हैं
गलते हुए ग्लेशियर हैं सूखते मुहाने हैं
हांफती-सी नदियों के लापता ठिकाने हैं
टूटती ओजोन पर्तें रोज़ आसमानों में
आतिशों की बारिश है प्यास के तराने हैं
कटते हुए जंगल के गुमशुदा परिंदों को
आंसुओं की सूरत में दर्द गुनगुनाने हैं
एटमी प्रदूषण के कातिलाना तेवर हैं
बहशी ग्लोबल वार्मिंग के सुनामी कारनामे हैं
धुंआं-धुंआं मौसम में हंसते कारखाने हैं
पांव बूढ़ी पृथ्वी के अब तो डगमगाने हैं।
पंडित सुरेश नीरव

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