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Tuesday, April 30, 2013

ग़ज़ल का एक शिगुफ्ता चेहरा



सुरेश नीरवःग़ज़लों का शिग़ुफ़्ता चेहरा
-(पद्मश्री) डॉक्टर बशीर बद्र
पंडित सुरेश नीरव
एक शायर की हैसियत से रचनात्मक तौर पर इधर आठ-दस सालों से मेरे भीतर बहुत-सी तब्दीलियां आई हैं और मैंने अपने अहद की शायरी की जबान और उसके पोयटिक ट्रीटमेंट के बारे में बड़ी शिद्दत से सोचना शुरू कर दिया है। और मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ग़ज़ल हर दौर में अपने अपने वक़्त की बोली जानेवाली जबान में ही लिखी गई है। और लिखी जाती रहेगी। यह शायर का ही कमाल होता है कि वह बोलचाल की भाषा के बूते पर ही कई जबानों की धड़कन बन जाता है। इस मामले में मैं कबीर को अपना रहबर मानता हूं। अगर और पीछे जाएं तो हैरत होती है कि जिस खुसरो को हम जानते हैं और उनकी जिन गजलों को जानते हैं उसके एक मिसरे में आधा मिसरा उस देहाती बोली का है जो खुसरो के शायराना कमाल से मिलकर आज भी हरा-भरा है। कबीर को अपना सबसे बड़ा रहबर मानने का मतलब यह कतई नहीं है कि मैं उनकी शब्दावली को अपनी शब्दावली बना लूं। और न ही मुझमें इतना कमाल है कि मैं उनके हर तलफ्फुज़ को शब्दो में बांधकर सही साबित कर दूं। क्योंकि कबीर ही ऐसे शायर हैं जिनका पोयटिक ट्रीटमेंट,पोयटिक एक्स्प्रेशन इतना सहज है,इतना नेचुरल है कि उसके मुकाबले सही शब्द भी गलत लगने लगता है। ऐसी मिसालें ग़ज़ल के तमाम शायरों की ग़ज़ल में मिलती हैं कि लफ्ज़ का नया इस्तेमाल हो और हर लफ्ज़ बिल्कुल अपने अहद की बोलचाल से लिया गया हो। आज इक्कीसवीं सदी तक आते-आते उर्दू ग़ज़ल के मुख्य मेटॉफर(ऱूपक), सिंबल(प्रतीक), सिम्लीज (उपमाएं) जो कभी रिवायत में थे अब बिल्कुल अनपोयटिक(गैर शायराना) हो चुके हैं और इनमें कोई खूबसूरती नहीं रह गई है। हमें नए-नए शब्दों को,नए-नए रुपकों को अपनाना ही होगा,यह वक्त की मांग है।अपने पोयटिक क्रिएशन के दौर में नए शब्द ही ग़ज़ल को नई शक्ल दे सकते हैं। और पंडित सुरेश नीरव ने यह कमाल अपनी ग़ज़लों में बखूबी करके दिखाया है। तंज़ो-मिजाह के इनके ग़ज़ल संग्रह मज़ा मिलेनियम में मैंने टेलीफोन,स्टेशन,कमांडो,करेंट,फ्यूज,कंप्यूटर और टी.वी.-जैसे कम-से-कम डेढ़सौ ऐसे शब्द निकाले हैं,जिन्हें आज अंग्रेजी के शब्द कहना या मानना ग़लत होगा क्योंकि काफी लंबे समय से ज़िंदगी में इस्तेमाल होते रहने के कारण,अब ये शब्द अंग्रेजी के नहीं रह गए हैं।अब वे हिंदी और उर्दू जुबान के हिस्सा बन चुके हैं। हमने अपनी जबान के सौंधे सांचे में इन्हें ढालकर अपना बना लिया है। ऐसे  अद्भुत प्रयोग आनेवाले अहद की शायरी के लिए बहुत अहम हैं ही और अब जरूरी भी हो गए हैं।
सुरेश नीरव ने तजुर्बों और गहरी पकड़ की बिना पर ग़ज़ल की जो सच्ची भाषा है,उसकी आत्मा को छू लिया है। नीरव-जैसे शायरों ने अपनी शायरी से यह साबित कर दिया है कि भाषा का सफ़र कभी थमता नहीं है। और जो उसके साथ कदम-से-कदम मिलाकर नहीं चल पाता है,वह शायर बेमानी हो जाता है। शायरी में शिग़ुफ्तगी(खिलावट), नुदरत(नयापन), मानीआफ़रीनी (अर्थपूर्णता) और ख़ूबसूरती सब हमारी ज़िंदगी का ही हिस्सा हैं। जिसकी मुख्तलिफ ख़ुशबुओं से बोलचाल की जबान को एक नई महक,एक नयी शक़्ल देना उस दौर के शायर का तहजीबी फर्ज़ है। आज पूरे भारत की जो हिंदी है या उर्दू है,वह हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत की ही नई शक़्ल है। और वही ग़ज़ल की सच्ची भाषा है। इस भाषा में एक वर्डक्लास लिटरेरी लेंग्वेज की संपूर्णता है। और इसकी बेहतरीन मिसाल हैं सुरेश नीरव की ग़ज़लें। अदबी हलकों से इन्हें और इनके क़लाम को पजीराई(स्वीकारता) हासिल होगी इन नेक ख्वाहिशों के साथ मैं लफ्ज़ों के इस सफ़ीर को आपके सुपुर्द कर रहा हूं।
                                                  -पद्मश्री डॉक्टर बशीर बद्र
                                     11,रेहानाकॉलोनी,ईदगाहहिल्स,भोपाल(म.प्र.)

Monday, April 29, 2013

सुरेश नीरव से साक्षात्कार


साक्षात्कार- 
प्रतिबद्धता वहीं संबद्धता जरूरी है
-पंडित सुरेश नीरव
 वैचारिक प्रतिबद्धता को लेकर साहित्य में बहुत गरमागरम बहसें चला करती हैं। जहां एक वर्ग साहित्य सृजन के लिए इसे बहुत आवश्यक शर्त मानता है तो वहीं कुछ स्वतंत्रचेता साहित्यकार इसे सृजन की विरा़टता के लिए घातक मानते हैं। हमने इसी संदर्भ में मौलिक चिंतक कवि पं. सुरेश नीरव से बात की। प्रस्तुत है उस बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश-
 नीरवजी आप विगत तीन दशकों से साहित्य से संबद्ध हैं। आप वैचारिक प्रतिबद्धता को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं।
मेरे हिसाब से विचार और विचारधारा दो अलग-अलग चीजें हैं। विचार सतत है,निरंतर है,प्रवहमान है जबकि विचारधारा एक निश्चित परिधि में सीमित,स्थिर और लगभग अपरिवर्तनशील तर्कों और निष्कर्षों का संचयन है। विचार बहती धारा है और विचारधारा वाद के गड्ढे में रुका पानी है। और जो रुक गया वह जीवंत नहीं हो सकता। हमारी प्रतिबद्धता विचार से हो या विचारधारा से इस प्रश्न के उत्तर में मैं यही कहना चाहूंगा कि प्रतिबद्धता भी एक तरह का जुड़ाव है,बंधन है,खूंटा है। फिर भी प्रतिबद्धता जरूरी है। मगर प्रतिबद्धता किसके साथ। यह प्रतिबद्धता होनी चाहिए विचार के साथ,मूल्यों के साथ। सृजन के लिए यही जरूरी है। मूल्यगत प्रतिबद्धता एक व्यापक अनुभव संसार को सृजन में उतारती है। साहित्य को एक दृष्टि देती है जबकि विचारधारा से प्रतिबद्धता एक विशेष दृष्टि से साहित्य को देखती है। सृष्टि से दृष्टि का विकास हो यह तो ठीक है मगर सृष्टि को देखने का पूर्वग्रह एक किस्म का बौद्धिक दीवालियापन है। मानसिक विकृति है। और अपने अनुभव संसार को बौना करने का भावुक हठ है। इसके अलावा और कुछ नहीं।
00 तो फिर इतने सारे सृजनकार प्रतिबद्धता को स्वीकारने की बात क्यों करते हैं। क्या उन्हें इसके नुकसान और फायदों की जानकारी नहीं है।
 उन्हें नुकसान और फायदे दोनों की ही बड़ी बारीक जानकारी होती है। वे जानते हैं कि तात्कालिक फायदों के बटोर लेने में ही ज्यादा फायदा है बजाय भविष्यगत नुकसान के। इसलिए उन्होंने उस नुकसान की तरफ से मुंह ही मोड़ लिया है।आनेवाले समय में मुल्यांकन होगा कि नहीं ौर होगा तो हमें किस श्रणी में रखा जाएगा इस चिंता  में दुबले होने के बजाय यथाशीघ्र अपना मुल्यांकन,सम्मान और पुरस्कार प्राप्त करना ही जिन्होंने श्रेयस्कर समझा है वे उत्साहपूर्पक किसी-न-किसी वैचारिक मठ से जुड़ ही जाते हैं।जहां उन्हें विरासत में एक गढ़ी हुई भाषा मिल जाती है,तैयार मुहावरे मिल जाते हैं। एक प्रचलित भाषा से लैस समीक्षकों और रचनाकारों की फौज मिल जारी है,जिसके बल पर वर्ग विशेष में उन्हें पहचान भी मिल जाती है। अपने बूते पर अस्तित्व की लड़ाई लड़ने में हारने की और जीतने की दोनों की संभावना रहती है मगर किसी कबीले की सदस्यता ले लेने पर हार का भय समाप्त हो जाता है। क्योंकि तब पराजय व्यक्तिगत न होकर पूरे कबीलो की मानी जाती है। और फिर लाभ चाहे विचारधारा के नाम पर ही मिले लाभ ही होता है। जो अंततः व्यक्तिगत ही होता है। इसलिए प्रतिबद्धता का सीधा मतलब है विचारधारा से जुड़े व्यक्ति का गारंटीशुदा लाभ और साहित्य का नुकसान।
00 यानी आप प्रतिबद्धता को एकदम नकारते हैं।
प्रतिबद्धता कहीं-न-कहीं अभिव्यक्ति को एक विशेष खांचें में ढलने को विवश करती है जिस कारण अभिव्यक्ति बाधित होती  है। और प्रतिबद्धता इसमें बाधक बनती है। वेसे प्रतिबद्धता और संबद्धता में भी फर्क है। एक कमिटमेंट है और एक इनवाल्वमेंट है। मसलन क्रांति के लिए कमिटमेंट एक चीज़ है और क्रांति के लिए इन्वाल्वमेंट दूलरी चीज़ है। जिसने क्राति के मूल्यों को अपने जीवन में नहीं जिया उसका क्रांतिकारी होना तो दूर है ही वह क्रांतिकारी लेखन भी उतना सजीव, जीवंत और प्रामाणिक नहीं  कर पाएगा। इसलिए विचार की जगह मैं मूल्यों की प्रतिबद्धता
 को ज्यादा महत्वपूर्ण मानता हूं। मूल्य सृजन को विराटता देते हैं।
00 मूल्य और विचार में आप कैसे फर्क करते हैं।
 इसे ऐसे समझा जा सकता है। कबीर ने जो लिखा उसे जिया भी। जो कहा उसे किया भी।  एक एकात्म है उनकी जीवन शैली में। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में। उनके जीवन का मूल्य था पाखंड पर प्रहार।  विद्रोह कबीर के जीवन का मूल्य है।महज़ विचार नहीं। लेकिन बाद में लोग सोच-समझकर उसे विचारधारा के एक खांचे में फिट करने लगते हैं। वो किसी विचारधारा विशेष का तमगा नहीं चाहते थे। वो इसकेलिए लिख भी नहीं रहे थे।


Friday, April 26, 2013


अजीब लोग हैं , परेशान हैं बेगम से .
गम से तो ठीक ,पर  ..बे- गम से ......

घनश्याम वशिष्ठ 

Thursday, April 25, 2013

तुमनें भला क्यूँ सोचा ,जायेंगे यूँ  ही मर हम 
आये हो जो लगानें ,ज़ख्में जिगर  पे मरहम 

घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, April 23, 2013

बद्रीनाथ साहित्य महोत्सव

बद्रीनाथ में जो प्रतिभागी जाएंगे संस्था द्वारा उन्हें यह प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा।

Saturday, April 20, 2013

जानवर भी शर्मिंदा हैं

कंजक जिमाना और कन्यापूजन हमारी संस्कृति का गौरवशाली पक्ष है। मगर इसी पवित्र दिन एक मासूम गुड़िया के साथ देश की राजधानी में हुआ दुष्कर्म हमें सोचने को विवश करता है कि- हम क्या थे, हम क्या हैं और क्या हम होंगे अभी???

Wednesday, April 17, 2013

सदभावना सम्मान



नरेन्द्रसिंह फाउंडेशन-
सदभावना कविसम्मेलन एवं सम्मान समारोह
 नरेन्द्रसिंह फाउंडेशन के तत्वावधान में सोनिया विहार,दिल्ली में 18 मार्च को सायं 6.00 बजे सदभावना कविसम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। जिसमें पंडित सुरेश नीरव,कुंवर जावेद,प्रकाश प्रलय,अजहर इकबाल,अशोक टाडंबरी,बेबाक जौनपुरी कविता पाठ करेगे। इस अवसर पर कविता और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए राकेश पांडेय(संपादकःप्रवासी संसार), प्रवीण चौहान(संपादकः समकालीन चौथी दुनिया), किशोरश्रीवास्तव(संपादकः समाज कल्याण), अरुण सागर (संपादक साहित्य-ऋचा) तथा योगेश मिश्रा(डाइरेक्टरःरायटर्स डेस्क) को सदभावना सम्मान से अलंकृत भी किया जाएगा। कवि सम्मेलन का उदघाटन सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी तथा अध्यक्षता पंडित सुरेश नीरव करेंगे। सांसद जयप्रकाश अग्रवाल एवं सासंद औतार सिंह भड़ाना इस समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। समारोह के संयोजक चौधरी त्रिलोक सिंह ने सभी साहित्यप्रेमियों को इस अवसर पर सादर आमंत्रित किया है।

Saturday, April 13, 2013

सोनियाविहार में कविसम्मेलन

अठारह अप्रैल को कविसम्मेलन
मुख्य अतिथिः श्री सत्यव्रत चतुर्वेदी ( संसद सदस्य), जयप्रकाश अग्रवाल( संसद सदस्य), औतारसिंह भड़ाना ( संसद सदस्य)

Friday, April 12, 2013

हर आहट पर साँसें लेने लगता है ,
इंतज़ार भी भला कहीं  मरता है  .
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, April 11, 2013

कपडा जैसे ही कफ़न हुआ ,
बेचारा वैसे ही दफ़न हुआ  .
घनश्याम वशिष्ठ

Wednesday, April 10, 2013

नव सम्वत्सर, गुड़ी पाड़वा तथा आर्यसमाज स्थापना दिवस पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई....

नव सम्वत्सर, गुड़ी पाड़वा तथा आर्यसमाज स्थापना दिवस पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई....
पंडित सुरेश नीरव
सचमुच तुम में कुछ बात है ,
पर क्या ...अज्ञात है  .
घनश्याम वशिष्ठ

Tuesday, April 9, 2013

संवेदनशून्य युग में, सत्याग्रह ... अव्यवहारिक बातें हैं .
सच तो यही  है .. पत्थर पिंघलते बहीं ,तोड़े जाते हैं .
घनश्याम वशिष्ठ

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य

कविवर श्री भगवान सिंह हंस
प्रणीत
 बृहद भरत चरित्र महाकाव्य  
 
टीका सहित (द्वितीय संस्करण )
 
आपके दर्शनार्थ -
















Monday, April 8, 2013

सकल पदार्थ  हैं  जग  माहीं ,
सरल सुलभ सत्ता सुत  ताहीं  .
घनश्याम वशिष्ठ

Sunday, April 7, 2013

एक महत्वपूर्ण उपलब्धि

परम श्रद्धेय एवं आदरणीय
 शब्दऋषि  गुरूजी  पंडित सुरेश नीरवजी 
की मंगलमय चरणरज जो  मेरे माथे  का तिलक है, के अनवरत आशीर्वाद से मेरे तुच्छ भावों का श्रंखलावत एवं द्वितीय संस्करण टीका सहित  बृहद भरत   चरित्र महाकाव्य  रुपी भागीरथी जन-जन को तारने वाली,  हंस सरोवर से प्रवाहित होकर अब आपके करकमलों में पहुँच चुकी है।  इस महती गुरु  प्रसाद के लिए जो मेरे लिए मुस्किल था, श्रीगुरूजी को  धन्य- धन्य करके कृतकृत्य होता  हूँ .  मेरे पालागन।
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**महत्वपूर्ण रचनात्मक उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई श्री भगवानसिंह हंसजी।

क्या याद है आपको आज के दिन का महत्व

क्या याद है आपको आज के दिन का महत्व

गजरौला में कवि सम्मेलन

कवितापाठ करते हुए पंडित सुरेश नीरव
अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति
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**गजरौला में हुआ कवि सम्मेलन
अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति की उत्तर प्रदेश शाखा के तत्वावधान में गजरौला में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। अध्यक्षता अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के राष्ट्रीय़ अध्यक्ष कवि-पत्रकार पंडित सुरेश नीरव ने की। कवि सम्मेलन में प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडेय,समाज कल्याण पत्रिका के संपादक किशोर श्रीवास्तव, साहित्यऋचा के संपादक अरुण सागर,ट्रूमीडिया के सलाहकार संपादक बेबाक जौनपुरी,रायटर्स डेस्क के डायरेक्टर योगेश मिश्र के अलावा शायर अजहर इकबाल,घनश्याम वशिष्ठ,रजनीकांत राजू,स्नेहलता और कार्यक्रम की संयोजिका डॉक्टर मधु चतुर्वेदी ने कविता पाठ किया। संचालन डॉक्टर राहुल अवस्थी ने किया। इस अवसर पर दिल्ली से शरीक हुए ज्ञानेन्द्र चतुर्वेदी और अशोक चतुर्वेदी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

Saturday, April 6, 2013

सृजन पथ: हिंदी फिल्मों में स्वास्थ्य हमेशा महत्वपूर्ण विषयव...

सृजन पथ: हिंदी फिल्मों में स्वास्थ्य हमेशा महत्वपूर्ण विषयव...: हिंदी फिल्मों ने अपने प्रारंभिक काल से ही मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों की भर्त्सना और सांस्कृतिक उन्नयन के प्रति अपनी निष्ठा प्रद...

Friday, April 5, 2013

माना  कि  राहें  सरल  नहीं  हैं ,
पर ..रुक जाना भी हल नहीं  है .
घनश्याम वशिष्ठ

Thursday, April 4, 2013

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य ( टीका सहित )

 




परम श्रद्धेय एवं आदरणीय शब्दऋषि  गुरूजी  पंडित सुरेश नीरवजी की मंगलमय चरणरज जो  मेरे माथे  का तिलक है, के अनवरत आशीर्वाद से मेरे तुच्छ भावों का श्रंखलावत एवं द्वितीय संस्करण टीका सहित  बृहद भरत चरित्र महाकाव्य  रुपी भागीरथी जन-जन को तारने वाली,  हंस सरोवर से प्रवाहित होकर अब आपके करकमलों में पहुँच चुकी है।  इस महती गुरु  प्रसाद के लिए जो मेरे लिए मुस्किल था, श्रीगुरूजी को  धन्य- धन्य करके कृतकृत्य होता  हूँ .  मेरे पालागन।
 
 पृष्ठ 720    मूल्य -रु-४५०  
 
(१ ) युगहंस  प्रकाशन 
संपर्क -9 9 1 0 7 7 9 3 8 4 
 
(२)  हिंदी बुक सेंटर  
आसफअली रोड  
नई दिल्ली -१ १ ० ० ० २ 
011-23286757, 23268651
 
 
आपका अपना ही अभिन्न
 
 
टीका सहित बृहद भरत चरित्र महाकाव्य

                  श्रीभरत आरती 


ॐ जय श्री भरत हरे, ॐ जय श्री भरत हरे.

प्रजा  जनन   के संकट, पल   में  दूर  करे. 


भक्त जनन कारण, वन   में भक्ति  करी,

श्रद्धा  त्याग  ह्रदय में, खडाऊं   पूजि  हरी.


विकट समस्या धरणि पै, भरत लाल पाता,

भ्रात्र  भाव  भुवन  में, रघु कुल प्रण   गाता.


त्रिकोटि  गन्धर्व  संहारे, और  शैलूष  मारा.

सुर मुनिजन सब हर्षित, पावन भवन सारा.  


लालच  लोभ न  मन में , नंदी  ग्राम  गए, 

मन   प्रक्षालन  कीना, माँ   को   तार  गए.


राखि  मर्यादा  कुल  की , राम  राम  दाता,

धर्म  स्थापना  कीनी, जन जन गुण गाता.


भ्रात्र   प्रेम   का  टीका, भरत  भाल   सोहे,

वासुकि  नाग  जू  ध्यावै, सूँघत मन  मोहे.


भरतनाथ की आरति, जो  कोई  नर   गावै, 

रिद्धि सिद्धि घर आवै,अरु मुक्ति  भाव पावै.                                   




मननार्थ : बृहद भरत चरित्र महाकाव्य : महाकवि भगवान सिंह हंस 
 

                                               (टीका सहित)  पेज -720

पुस्तक संपर्क :-

(1) हिंदी बुक सेंटर                                         (2)  युगहंस प्रकाशन                  

 आसफ अली  रोड                                                ब्रह्मपुरी  दिल्ली-110053

नई दिल्ली 110002                                              9910779384, 9013456949

011-23286757, 23268651

विशिष्ट:- इस महाकाव्य पर विश्वविद्यालयों में शोध (एम फिल&;पीएचडी) हो चुके हैं. श्रद्धालुजन घरों और मंदिरों में पाठ एवं श्री भरत की आरती कर  रहे हैं.इसमें इक्ष्वाकुवंश  की 121 पीढ़ियों का विस्तृत
 वर्णन और राजा दशरथ की पुत्री शांता का भी विशेष चित्रण है. देश की सभी विश्वविद्यालयों/ पुस्तकालयों  में अध्ययनरत.
जन्म/निवासी :- 06 जुलाई 1954, ग्राम-हसनगढ़ , तहसील-इगलास, जनपद -अलीगढ (उ प्र) 
वर्तमान आवास :-एम-57 लेन -14 ब्रह्मपुरी  दिल्ली -110053, एम-9013456949
शिक्षा  /सम्प्रति:- एम ए (हिंदी), प्रधान अभिलेख अधिकारी, डाक विभाग दिल्ली 
रुचियाँ :- कवि सम्मलेन,/काव्य गोष्ठी में भागीदारी, दूरदर्शन और आकाशवाणी पर काव्य पाठ.
सम्मान :-साहित्यश्री , बिस्मिल साहित्य सम्मान, साहित्य शिरोमणि दामोदर दास चतुर्वेदी सम्मान , सर्वभाषा संस्कृति समन्व समिति सम्मान, महामहीम राष्ट्रपति द्वारा अभिनंदित.

                                       श्री हंस का रचना संसार     

                                                1.ऊषा (खंड काव्य )

                                                2.भरत चरित्र (महाकाव्य )

                                                3. सफ़र शब्दों का (काव्य संग्रह)

                                                4. श्रीभरतमाला (ध्यानमणिका)

                                                5. बृहद भरत चरित्र हाकाव्य (टीका सहित )  



   प्रस्तुति -


                                                                                                                               योगेश 
 
 
 

Wednesday, April 3, 2013

सुंदर सौष्ठव तन, किसी काबिल नहीं ,
मन  मजबूत नहीं ,कुछ हांसिल नहीं .
घनश्याम वशिष्ठ

कवि सम्मेलन

              अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति 

                                    (वाक् समवाय संगमनी)

                              गजरौला मैं 6 अप्रैल को सायं 6.00 बजे कवि सम्मेलन। 

                                              अध्यक्षताःपंडित सुरेश नीरव 

                                             संयोजकः डॉक्टर मधु चतुर्वेदी

काव्यपाठः बी.एल.गौड़,अरुण सागर, राकेश पांडेय,पीयूष चतुर्वेदी,अजहर इकबाल,योगेश मिश्रा,घनश्याम वशिष्ठ, रजनीकांत राजू,किशोर श्रीवास्तव और बेबाक जौनपुरी,
                                            सभी सदस्यगण सादर आमंत्रित हैं।

Tuesday, April 2, 2013

सदभावना कवि सम्मेलन

अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति-
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अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति की राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर मधु चतुर्वेदी ने गजरौला (ज्योतिबाफुले नगर) में सदभावना कवि सम्मेलन का आयोजन 06 अप्रैल को सायं-6.00 बजे रखा है। संस्था के सभी सदस्य सादर आमंत्रित है।कृपया अपने आगमन की सूचना उन्हें इस नंबर पर देने का कष्ट करें- -09837003888

Monday, April 1, 2013

घेरे बैठे हैं ...काग सयाने ,
किसकी मानें ,किसकी ना मानें .
घनश्याम वशिष्ठ

शब्दऋषि पं सुरेश नीरव

तृप्त  के  इस  संसार  में,
अतृप्त  जन  सदैव  रहा,
कालीदह या नृत्यफागुन,
बाँसुरी  वह  पकड़े   रहा।  




शब्दऋषि पं सुरेश नीरव,
शब्द की महिमा  अपार।
ये   इतना   भारी    लगा,
जो दूजे पर  दिया उतार।



मेरे पालागन 


 

आल्हा



आल्हा से आल्हादित एक शाम
ग़ाजियाबाद-प्रवासी संसार के तत्वावधान में कौशांबी स्थित राजपथ रेसीडेंसी में कल शाम आल्हा सम्राट पंडित गयाप्रसाद पांडे की मंडली के आल्हा गायक ओमप्रकाश पांडे और रामलखन ने अपने ओजस्वी आल्हा गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। और अपने गायन में नैनागढ़ तथा हनुमान-अर्जुन संवाद सुनाकर श्रोताओं की खूब प्रशंसा बटोरी। तीन घंटे तक चली इस ऐतिहासिक आल्हा संध्या का उदघाटन करते हुए महापौर तेलूराम कांबोज ने कहा कि हमारी सभी लोक-कलाएं धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। समाज अगर इन्हें सरंक्षण नहीं देगा तो आनेवाली पीढ़ियां इनसे अपरिचित ही रह जाएंगी। प्रवासी संसार पत्रिका ने आल्हा-गायन का आयोजन कर निश्चित ही एक सराहनीय कार्य किया है। और इसके लिए में प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडेय की प्रशंसा करता हूं। इस अवसर पर साहित्यिक विभूतियों में वरिष्ठ साहित्कार वीरेन्द्र वरनवाल, शब्द ऋषि अरविंद कुमार, विश्व नाथ त्रिपाठी, डॉक्टर अमर नाथ अमर, कमलेश भट्ट,पी.एन. सिंह, शिवकुमार बिलग्रामी,वीरेन्द्र गोयल,योगेश मिश्रा,रजनीकांत राजू, बी.एल.गौड़, डॉक्टर विवेक गौतम तथा प्रकाशन संस्थान के हरीश चंद्र शर्मा आदि अनेक लोगों की उपस्थिति उल्लेखनीय है। गायन संध्या का संचालन पंडित सुरेश नीरव ने किया।

आल्हा गायन



आल्हा से आल्हादित एक शाम
ग़ाजियाबाद-प्रवासी संसार के तत्वावधान में कौशांबी स्थित राजपथ रेसीडेंसी में कल शाम आल्हा सम्राट पंडित गयाप्रसाद पांडे की मंडली के आल्हा गायक ओमप्रकाश पांडे और रामलखन ने अपने ओजस्वी आल्हा गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। और अपने गायन में नैनागढ़ तथा हनुमान-अर्जुन संवाद सुनाकर श्रोताओं की खूब प्रशंसा बटोरी। तीन घंटे तक चली इस ऐतिहासिक आल्हा संध्या का उदघाटन करते हुए महापौर तेलूराम कांबोज ने कहा कि हमारी सभी लोक-कलाएं धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। समाज अगर इन्हें सरंक्षण नहीं देगा तो आनेवाली पीढ़ियां इनसे अपरिचित ही रह जाएंगी। प्रवासी संसार पत्रिका ने आल्हा-गायन का आयोजन कर निश्चित ही एक सराहनीय कार्य किया है। और इसके लिए में प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडेय की प्रशंसा करता हूं। इस अवसर पर साहित्यिक विभूतियों में वरिष्ठ साहित्कार वीरेन्द्र वरनवाल, शब्द ऋषि अरविंद कुमार, विश्व नाथ त्रिपाठी, डॉक्टर अमर नाथ अमर, कमलेश भट्ट,पी.एन. सिंह, शिवकुमार बिलग्रामी,वीरेन्द्र गोयल,योगेश मिश्रा,रजनीकांत राजू, बी.एल.गौड़, डॉक्टर विवेक गौतम तथा प्रकाशन संस्थान के हरीश चंद्र शर्मा आदि अनेक लोगों की उपस्थिति उल्लेखनीय है। गायन संध्या का संचालन पंडित सुरेश नीरव ने किया।