पंडित सुरेश नीरवजी को जय लोकमंगल का नया एवं बहुत ही आकर्षित रूप देने के लिए बहुत-बहुत बधाई। यह केवल नया रूप ही नहीं बल्कि हमारी भाषायिक संपदा, धरोहर और संस्कृति का नीरवजी ने सोच, विचार, मंथन एवं विश्लेषण करके अपनी अनुभूति, भाव, संज्ञान और चिंतन के अप्रितम अवदान का मार्तंड ज्योतित किया है जिस ज्योतिर्यादित्य से सर्व समभाव की अवधारणा की लौ जलाकर अपने पूर्वजों की धरोहर और संस्कृति को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे। और विदेशी भाषायिक तथा संस्कृति थोपे हुए उपलों का होलिका दहन करके ईस्ट इण्डिया कंपनी की तरह उखाड़कर फेंक देंगे। विश्ववन्दित नीरवजी ने जय लोकमंगल का नया रूप देकर यह सावित कर दिया है कि हमारी संस्कृति जीवंत है, ससत है और शाश्वत है जिसकी भागीरथी सत्यम शिवम् सुन्दरम की जूडी से निकलकर जन-जन को तारती रहेगी। नीरवजी सच में शब्द जौहरी हैंजिनका सान्निध्य ही हमारे लिए गंगाजल है। हम सब उसका पान करें।
जय लोकमंगल। भगवान सिंह हंस
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