भाई पथिक जी, आपका तहे-दिल से शुक्रिया। आपने देर ज़रूर की मगर जो ग़ज़ल प० राम प्रसाद बिस्मिल की आपने प्रस्तुत की और उसका जो सन्दर्भ आपने बताया तो इस ग़ज़ल को उस सन्दर्भ के साथ पढ़कर समझ में आया कि किस आला दरज़े के शायर थे बिस्मिल जी। कृपया समय-समय पर उनकी रचनाएं ब्लॉग पर देते रहिए। आज राजमणि जी द्वारा प्रस्तुत पैरोडी सटीक और चुभती हुई है। राजमणि जी ब्लॉग पर विविधता बनाए हुए हैं, जिस से ब्लॉग का आकर्षण बढ़ रहा है। उनसे गुज़ारिश है, कृपया इसी तरह लगे रहिए।
हंसजी को पालागन। प० नीरव जी, मुझे खुशी है कि दुश्मनों की तबीयत ठीक हो गई।आप लोगों को ज़हमत उठानी नहीं पड़ी और एक राष्ट्रीय संकट टल गया। मैं वाकई काफ़ी परेशान हो गया था अपनी तबीयत को लेकर। आप तो जानते ही हैं कि न गालिब रहे, न मीर, मोमिन, ज़ौक यहाँ तक कि जिगर भी नहीं रहे।अगर खुदा न ख्वास्ता मुझे कुछ हो जाता तो इस देश का क्या होता? ऊपर वाला मेहरबान है और उसका शुक्रिया कि एक संकट आसानी से टल गया।
मृगेन्द्र मकबूल
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