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Friday, August 31, 2018

इस मयक़दे में







इस मयकदे में कैसा ये जादू हुआ जनाब
 छूकर निगाह आपकी पानी हुआ शराब।

बेपरदा मयकदे में चले आये क्यूं हुजूर
रिंदों का हाल देखिए बिलकुल हुआ खराब।

गुलशन में तेरे आने की जब से हुई ख़बर
खिलने लगा दुबारा ये झरता हुआ गुलाब।

देखा हँसी को नाचते होठों पे आपके
धड़कन लुटा के सारी मेरा दिल हुआ नवाब।

है दूधिया लिबास में सिमटा-सा ये बदन
ज्यों चाँदनी में झील का निखरा हुआ शबाब।

                          -पंडित सुरेश नीरव

Thursday, August 30, 2018

देखी अल्फाज़ के चेहरों पर ख़यालों की तपन
इन पे नगमों के सितारों का तू साया कर दे।

                    ज़िंदगी और भी एहसास के हो जाए क़रीब
                    दिल के जख्मों को ज़रा और तू गहरा कर दे।

                    देखी अल्फाज़ के चेहरों पर ख़यालों की तपन
                                        इन पे नगमों के सितारों का तू साया कर दे।
                              -पंडित सुरेश नीरव



देखी अल्फाज़ के चेहरों पर ख़यालों की तपन
इन पे नगमों के सितारों का तू साया कर दे।

Wednesday, December 6, 2017

छब्बीसवीं किस्तः छूटते-जुड़ते शहर

पिता जी ने पीलीभीत से आकर जब बहराईच नगर पालिका में लेखाकर के पद का कार्यभार ग्रहण किया था तब हम उम्र में बहुत छोटे-थे। एक शहर से दूसरे शहर के लिये प्रस्थान का हमारे लिये तब कोई खास मायने नहीं था। परन्तु जब पिता जी के तबादले के चलते हमारा बहराईच से झाँसी जाना हुआ तब हमारे चेहरे पर कहीं खुशी के बादल मडरा रहे थे तो कहीं दुख के। झाँसी एक विश्व प्रसिद्ध शहर था। जहां बहराइच एक छोटा शहर भर था वहीं झांसी कमिश्नरी थी। अत्यन्त आकर्षक और बड़ा-सा रेलवे स्टेशन, भव्य रानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज और विशेष रूप से वहां 8 के करीब छोटे-बड़े सिनेमा हालों का हमारे लिये खास आकर्षण था। और सबसे बड़ी बात जो थी वह यह थी कि जिस रानी से जुड़ा कवयित्री सुभद्रा कुमारी का लिखा गीत ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ अपने गवर्नमेंट इंटर कॉलेज की विभिन्न कक्षाओं में गा-गा कर हमने अनेक बार अपने शिक्षकों और सहपाठियों की वाह-वाही लूटी थी, हमें उसी महान वीरांगना के शहर में आने का सुअवसर मिल रहा था। इसके विपरीत ग़म इस बात का था कि जिस शहर में हमने होश संभाला, हमारा बचपन बीता और जिसने हमें शुरूवाती दिनों में ही गीत-संगीत के क्षेत्र में किसी चाइल्ड स्टार जैसा ग्लेमरस जीवन देकर बुलंदियों तक पहुंचाया था, बचपन के ढेर सारे प्रिय साथियों सहित वह सब बहुत कुछ कीमती हमसे छूट रहा था।

जिस दिन हमारे घर का सामान ट्रक में लादा जा रहा था उस दिन घर क्या, मानो समूचे मोहल्ले में निस्तब्धता छाई हुई थी। हम उदास, हमारे संगी-साथी उदास और सारा वातावरण भी ग़मगीन-सा दिखलाई पड़ रहा था। जब सारा सामान ट्रक में लादा जा चुका था तब खाली मकान की दीवारें चूम चूम कर हम रो पड़ थे। हम बारी-बारी से हर कमरे में जाते। जहाँ-जहाँ हम खेले-कूदे थे, सजल नेत्रों से वहाँ की ज़मीन छू-छूकर देखते और मायूसी से आगे बढ़ जाते। उस वक़्त हम घर के अहाते में लगे पेड़-पौधों से भी काफ़ी देर तक लिपटते-चिपटते रहे थे । कभी तो उन्हें देखकर यह भी महसूस होता कि वह  आगे बढ़कर हमें झाँसी जाने से रोकना चाह रहे हों  

हमारे पिताजी के प्रयास से जिस ओमप्रकाश भैया के पिता को नगर पालिका प्रांगण में रेस्टोरेंट के लिये जगह मिली थी, हमारी बिदाई पर उनका सबसे ज़्यादा बुरा हाल था। ओमप्रकाश भैया तो घंटों हमें पकड़कर फूट-फूट कर रोते रहे थे। और हमारे ट्रेन पर सवार होने पर तो ऐसा लग रहा था जैसे वह हमें रोकने के लिये ट्रेन के आगे ही लेट जायेंगे।

7 नवंबर,2017 
(शेष अगली किस्त में)





Wednesday, October 21, 2015

गुवाहाटी अधिवेशन



आप सभी को दशहरे की शुभकामनाएं।
                          -पंडित सुरेश नीरव

Tuesday, January 13, 2015

नयी सुबह की नई किरण ,नये साल का नया सवेरा ।
चिड़िया चहक उठी पेड़ो पर ,निकली अपना छोड़ बसेरा ॥
हम भी अपना आलस्य त्यागें ,छोड़े बिस्तर और घर द्वार ।
अपने कर्मो को कर पूरा ,करे दूर जीवन का अँधेरा  ॥
                                                  रजनी कांत राजू 

Thursday, December 18, 2014

काव्यमंगलम्


कविसम्मेलन

 सर्वभाषा संस्कृति संमन्वय समिति-
                   कविसम्मेलन
24 दिसंबर 2014

Friday, October 10, 2014

सम्पूर्ण स्वच्छता के बतौर,
एक कदम  .......... 
चारित्रिक स्वच्छता की ओर   
घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, September 23, 2014

मुंह तोड़ जबाब उसे दो , जो सबल हो  
उसे क्या  ,,जो बिला बल हो 
घनश्याम वशिष्ठ 

Friday, September 19, 2014

डायबिटीज़ कर रही है ,बार्डर लाइन क्रॉस ,
फिर भी  चीनी मोह  ………  अफ़सोस  . 
घनश्याम वशिष्ठ 

Tuesday, September 16, 2014

जब कही ही दूसरों के फायदे की ,
क्या खाक कही क़ायदे की  …। 
 घनश्याम वशिष्ठ 

Wednesday, September 10, 2014

यहाँ पग पग  पर फरेब है ,
इन गलियों  में ही ऐब है  . 
घनश्याम वशिष्ठ