नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है
देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है।
बाँध कर रखा है किसी सोच ने घर से हमको
वरना दरो-दीवार से रिश्ता क्या है।
रेत की, ईंट की, पत्थर की हो या मिटटी की
किसी दीवार के साये का भरोसा क्या है।
अपनी दानिश्त में समझे कोई दुनिया शाहिद
वरना हाथों में लकीरों के इलावा क्या है।
शाहिद कबीर
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
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