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Tuesday, June 16, 2009

मियां मकबूल के लिए
नेमीशारण्य घूम के आए मियां मकबूल
बस में करके यात्रा हिले बदन के चूल
थके-थकाए खाट पर फांक रहे हैं धूल
सेहत का थकान में डूब रहा मस्तूल।
पं. सुरेश नीरव
और एक गजल--
मयकदे में
इस मयकदे में कैसा ये जादू हुआ जनाब
छूकर निगाह आपकी पानी हुआ शराब
बेपरदा मयकदे में चले आए क्यूं हुजूर
रिंदों का हाल देखिए बिलकुल हुआ खराब
गुलशन में तेरे आने की जब से हुई खबर
खिलने लगा दुबारा ये झरता हुआ गुलाब
देखा हँसी को नाचते होठों पे आपके
धड़कन लुटा के सारी मेरा दिल हुआ नवाब
है दूधिया लिबास में सिमटा-सा ये बदन
ज्यों चांदनी में झील का निखरा हुआ शबाब।
सुरेश नीरव

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