ये इंतज़ार ग़लत है कि शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौरे- जाम हो जाए।
ख़ुदा न ख्वास्ता पीने लगे जो वाइज़ भी
हमारे वास्ते पीना हराम हो जाए।
मुझ जैसे रिंद को भी तूने हश्र में या रब
बुला लिया है तो कुछ इन्तज़ाम हो जाए।
वो सहने- बाग़ में आए हैं मयकशी के लिए
ख़ुदा करे कि हर इक फूल जाम हो जाए।
मुझे पसंद नहीं इस पे गाम- ज़न होना
वो रहगुज़र जो गुज़रगाहे-आम हो जाए।
नरेश कुमार शाद
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
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