यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Monday, July 27, 2009
पं. सुरेश नीरवजी आपकी गजल बहुत सार्थक रही है. भगवान सिंह हंस की कविता बहुत अच्छी लगी। नए सदस्य अशोक मनोरम का हार्दिक अभिनंदन।आज मकबूलजी नहीं दिखे। मधु चतुर्वेदी
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