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Monday, July 27, 2009

पं. सुरेश नीरवजी आपकी गजल बहुत सार्थक रही है.
भगवान सिंह हंस की कविता बहुत अच्छी लगी।
नए सदस्य अशोक मनोरम का हार्दिक अभिनंदन।आज मकबूलजी नहीं दिखे।
मधु चतुर्वेदी

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