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Monday, July 27, 2009

झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी

कल ही प्रदेश की सरकार ने गाजियाबाद को सूखाग्रस्त घोषित किया है और आज ही टूट के बरसात हो रही है। आज हमारे कम्प्यूटर महोदर की तबियत नासाज़ हो गई, लिहाज़ा साइबर कैफे की सेवायें ले पोस्ट कर रहा हूँ।
प० नीरव जी की रचना हमेशा की तरह बेहतरीन है। आज हंस जी ने भी बहुत उम्दा रचना पेश की है। बधाई।
आज मुनीर नियाजी की एक ग़ज़ल पेश है।

फूल थे, बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
दिल में लेकिन और ही एक शक्ल की हसरत भी थी।

जो हवा में घर बनाए काश कोई देखता
दाश्त में रहते थे पर तामीर की आदत भी थी।

कह गया मैं सामने उसके जो दिल का मुद्दआ
कुछ तो मौसम भी अजब था कुछ मेरी हिम्मत भी थी।

अजनबी शहरों में रहते उम्र सारी कट गई
गो ज़रा से फ़ासले पर घर की हर राहत भी थी।

क्या कयामत है मुनीर अब याद भी आते नहीं
वो पुराने आशना जिनसे हमें उलफ़त भी थी।

प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल

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