मत यार बात करो
भूख की
अभाव की
कुढ़न ,संत्रास ,कुंठा या बाज़ार भाव की.
अरे कभी कभी तो यार
शौक से जिया करो
और यदि नहीं है कुछ करने को
तो कविता किया करो.
चलो यार चलो
कहीं 'संगोष्ठी' करते हैं
कविता के साथ साथ
समीक्षा का खेल खेलेंगे
खाना भी ,पीना भी
दूसरों की बखिया उधेड़ेंगे.
समय भी होगा हलाल,
नये मायने भी निकलेंगे
चर्चा हो लेगी कुछ अखबारी पन्नों में,
बात चाहे कुछ भी हो, तेवर तो बदलेंगे.
मत यार बात करो भूख की अभाव की.
कुढ़न ,संत्रास ,कुंठा या बाज़ार भाव की.
3 comments:
बहुत बढिया, सुन्दर रचना। बधाई
बेहतरीन रचना!
@समीर जी
@मिथलेश जी
उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद.
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