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Friday, August 21, 2009

हम ने पसीना बोया तो बंजर चमन हुआ

हम ने पसीना बोया तो बंजर चमन हुआ
धरती का स्याह कोना भी उजला चमन हुआ।

मेहनत करी जो तू ने ख़ुद हड्डी निचोड़ के
महकी हुई फ़सल सा ये तेरा बदन हुआ।

धरती चुरा के फ्लैट तो हमने बना लिए
खेती उजाड़ने का ये कैसा जतन हुआ।

करते किसान ख़ुद- कुशी कर्ज़े में डूब कर
क्यूँ यारो ख़स्ता- हाल ये मेरा वतन हुआ।

हँसते हुए खलिहान से फ़सलों ने ये कहा
मकबूल मंदिरों में ये श्रम का हवनहुआ।
मृगेन्द्र मकबूल




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