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Tuesday, September 1, 2009

तुम मुझे क्या जानो।

भाई राजमणिजी बेहतर ग़ज़ल पढ़वाई। धन्यवाद० मकबूलजी हजरत जयपुरी की गज़ल और आपकी हज़ल सुभान अल्लाह।० मुनीन्द्र नाथ चतुर्वेदी जी ने दिल्ली की ट्रेफिक समस्या का अच्छा खाका खींचा है। दरअसल यह समस्या प्रशासन की लचर नीतियों,ढुलमुल व्यवस्था और नागरिकों के लापरवाह ट्रेफिक सेंस बल्कि नानसेंस तहजीब का नतीजा है। जो साइकिल रखने की औकात भी नहीं रखते बैंकों के लोन की बदौलत वे लग्जरी गाड़ियां लेकर सड़क पर उतर आए हैं तब ऐसा पशुमेला सड़कों पर लगना ही है। नागरिक और प्रशासन दोनों को ही इस मामले में अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए,ऐसा मैं मानता हूं। और नीयमों के उलंघन करनेवालों को कड़ी सजा सख्ती के साथ देनी चाहिए,यह आवश्यक रूप से ज़रूरी है। तभी कुछ हो सकेगा।० डेनमार्क के मेरे मित्र सुरेश चंद्र शुक्ल की एक कविता पेश है-
तुम मुझे जानते हो
नहीं तुम सत्य कहते हो
तुम मुझे महीं जानते मैं वह युवती हूं
जो कभी बालिका-शरणार्थी बनी थी
तुम्हारे देश में।
मैं वही हूं
जो कभी नुमाइश थी
तुम्हारी आंखें लेती थी मेरी तलाशी
मेरा इंटरव्यू
मेलों और समेमेलनों में बनी थी एक वस्तु
मेरी पीढ़ा को तुम क्या जानो मेरी अनुभवी
सागरीय लहरों से पूछो
जिन्होंने किनारे के पत्थरों से
टकराना नहीं छोड़ा
तुम मुझे क्या जानो।
डा. सुरेश चंद्र शुक्ल
डेनमार्क

1 comment:

Udan Tashtari said...

सुरेश चंद्र शुक्ल जी की रचना पसंद आई....