साथियो,
आज भगवान् गणपति का विसर्जन धूमधाम से हो गया।
सूना सूना सा घर लगता है।
कुछ लाइने दे रहा हूँ -
हे गणेश
बुद्धि के दाता,
गोल - मटोल
पेट सुहाता ।
टेढी सूड़
चौडा माथा,
प्यारी लगे
तुम्हारी गाथा ।
चूहा क्यों
आड़े आ जाता,
हमें तुम्हारा
लड्डू भाता ।
[] राकेश 'सोऽहं'
2 comments:
जय गणपति !!
जय हो!!
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