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Thursday, December 24, 2009

आग पूरी कहाँ बुझी है अभी

आग पूरी कहाँ बुझी है अभी
दीदा-ऐ-तर में तश्नगी है अभी।

दोस्तों से चुका रहा हूँ हिसाब
दुश्मनों से कहाँ ठनी है अभी।

दोस्त कह कर न दे मुझे गाली
दिल पे इक ज़ख्मे-दोस्ती है अभी।

काट दे ये भी ख़ुद-परस्ती में
और थोड़ी सी ज़िन्दगी है अभी।

जाने क्यों कुंद हो गया नश्तर
ज़ख्म की धार तो वही है अभी।
मिदाहतुल अख्तर
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

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