तेरे जलवे अब मुझे हर सू नज़र आने लगे
काश ये भी हो के मुझ में तू नज़र आने लगे।
इब्तिदा ये थी के देखी थी ख़ुशी की इक झलक
इंतिहा ये है के ग़म हर सू नज़र आने लगे।
बेक़रारी बढ़ते बढ़ते, दिल की फितरत बन गई
शायद अब तस्कीन का पहलू नज़र आने लगे।
ख़त्म कर दे ऐ सबा अब शामे- ग़म की दास्ताँ
देख उन आंखों में भी आंसू नज़र आने लगे।
सबा अफगानी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
2 comments:
बढ़िया प्रस्तुति।
ख़त्म कर दे ऐ सबा अब शामे- ग़म की दास्ताँ
देख उन आंखों में भी आंसू नज़र आने लगे।
shuriyaa paramjeet bali ji,
maqbool
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