मैं क्या----?
बहुत दिनों से बड़ी व्यस्तता थी,
बस काम, काम, काम,
इक पल भी ये सोचने को भी कि -----
मैं कौन हूँ? मुझको फुर्सत ना थी
जिंदगी ---
एक साधारण इंसान का, साधारण जीवन ना थी
जैसे -----रेलवे का कोई चल्ताउ जक्शन थी
हरेक प्लेटफार्म पर ज़िम्मेदारियों की
अपनी -अपनी, अलग-अलग गाड़ियाँ लगी थीं
सबकी अपनी -अपनी राहें,
अपनी-अपनी दिशाएं और मंजिले थीं
पर मैं ! पर मैं तो स्टेशन मास्टर
मुझे सबकी सुनना, सबको सबकी बताना था
इसी काम के लिए तो ''सरकार'' ने
मेरा ही चयन किया था
''सरकार ''को पता था कि मैं उपयुक्त पात्र हूँ
कैसा भी, किसी भी तरह का शोर शराबा
वियापन, उद्घोषण,
मार-पीट, गाली-गलौज
चूड़ीवाले , पूडीवाले अख़बार वाले
खिलौनेवाले !
और ना जाने कौन -कौन से वाले,
मुझे प्रभावित नही कर सकते क्यों !
क्योंकि ,मैं स्टेशन मास्टर हूँ
पर ----
बरसों लंबा वह सफर् आख़िर बीत गया ,
(उसके बाद क्या बचा बताना ज़रूरी नहीं)
सच ही तो कहा है,
जो शुरू हुआ है बीत जाएगा
फिर नहीं आएगा, यादें रह जाएगी
आज -----
आज मुक्ति की सांस ने
उषा काल में जब
हृदय के झरोखों को खोला
तो देखा,
वरांडे में रखे गमले में लगे
गुलाब के पौधे पर
नन्हें -नन्हें दो नीलाभ गुलाब
अपनी अधखुलि आँखों में मुस्करा रहे थे,
उषा काल की शीतल वयार के झूले में,
आनंदमग्न झूल रहे थे
रवि रश्मीयों के नर्म -गर्म चुंबनों से
सिक्त हो रहे थे,
नीलिमा पर लालिमा,
बड़ी भली, बड़ी सुहानी लग रही थी
हठात !
हठात लगा सारा बहुमूल्य वक्त
शोर-शराबे में, ज़िम्मेदारियाँ निभाने में
यूँ ही गुजर गया
खुद की पहचान को एक पल भी ना मिला
उस रमणीक मनोहर बेला में भी
खुद को स्मरण कर आँख भर आई की --------
इतने में अंदर से आवाज़ आई
क्या आज चाय -बाय नहीं मिलेगी
मैं तो भूल ही गई थी एक पल को की ----
मैं अभी भी होममिनिस्टर हूँ
मुझे अपने लिए नहीं
सबके लिए जीना है
मुझे अपने आप को नहीं
सबको देखना है
यही मेरी नियती है
क्योंकि मैं औरत हूँ !!!
वेदना उपाध्याय
1 comment:
अति भावपूर्ण!!
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