ईश्वर की महिमा अनंत है उसे स
खैर
मैं इन्हें बतौर कहानी ही समझती हूँ
हाँ मेरा मानना ये ज़रूर हैं की
कहानियाँ मूल्य ,मान्यताओ और परम्पराओ की प्रतीक होती हैं
जो जन चेतना और जन विश्वास की संवाहक होती हैं
,बाकी आम आदमी को वर्तमान में जीना होता है, अत ीत में नहीं |
अभी कुछ दिन पहले ही एक घटना प ढ़ी थी
अभी कुछ दिन पहले ही एक घटना प
की एक पिता कहलाने वाला दरिन्दा
अपनी ही पुत्री के साथ एक साल त क
अपनी ही पुत्री के साथ एक साल त
मुख क़ाला करता रहा ये आधु निक युग की तस्बीर है |
कोई कहाँ तक लिखेगा? कोई कहां-कहां तक पढ़ेगा?
कोई कहाँ तक लिखेगा? कोई कहां-कहां तक पढ़ेगा?
सम्मान की इंतहा हो चुकी अब सम्मान नही
,सुरक्षा के नाम पर नाटक नही बस उन्हें शांति से जीने दो \
नारी को देवी मत बनाओ उसे नारी ही रहने दो |
अस्तु
वेदना उपाध्याय
शाहजहांपुर
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