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Monday, December 28, 2009

आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है

प० सुरेश नीरव ने लम्बी छुट्टी के बाद प्रकट होते ही धमाके से चार बेहतरीन गज़लों से नवाज़ा है। उनका ब्लॉग से गायब रहना बहुत खलता है मगर अगर गायब होने के बाद वो इसी तरह धमाकेदार एंट्री लें तो ब्लॉग में चार चाँद लग जाते हैं। बेहतरीन गज़लों के लिए उनको सलाम। आज सईद राही की एक छोटी सी ग़ज़ल पेश है।
आँख से आँख मिला, बात बनाता क्यूँ है
तू अगर मुझ से ख़फा है, तो छुपाता क्यूँ है।

ग़ैर लगता है, न अपनों की तरह मिलता है
तू ज़माने की तरह मुझ को सताता क्यूँ है।

वक़्त के साथ, हालात बदल जाते हैं
ये हक़ीक़त है, मगर मुझ को सुनाता क्यूँ है।

एक मुद्दत से जहाँ क़ाफिले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों पे चरागों को जलाता क्यूँ है।
मृगेन्द्र मक़बूल

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