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Thursday, January 7, 2010

ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें, वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद ।

राजमणिजी,
आपने नूर साहब की ग़ज़ले पढ़वाकर मुझे यादों के उस कुहासे में पहंचा दिया जब मैंने हरिद्वार में भेल के कवि सम्मेलन में अपने संचालन में उनसे ढेरों ग़ज़लें सुनी थीं। नूर साहब का तो जवाब ही नहीं है। सेंकड़ों अच्छे शायर उनके शागिर्द रहे हैं जिन में डॉ. कुंअर बेचैन का नाम भी शामिल है। मैं भी अच्छा शायर हो जाता अगर उनका शागिर्द हो पाता तो। खैर..आपनों यादों की दुनिया में मुझे टहलकदमी का मौका दिया शुक्रिया...

ज़मीर काँप तो जाता है, आप कुछ भी कहें,
वो हो गुनाह से पहले, कि हो गुनाह के बाद ।

मकबूलजी,
आपने बहुत सुंदर शेर पढ़वाए, शुक्रिया।

ज़िन्दगी की बिसात पर अक्सर
जीती बाज़ी भी हमने हारी है।

तोड़ो दिल मेरा, शौक से तोड़ो
चीज़ मेरी नहीं, तुम्हारी है।

चलिए हमारी ओर से भी एक ग़ज़ल पेशे खिदमत है-

हमको साथी भी ऐसे मिले
जैसे राजा को टूटे किले

पत्तियां फूल सब खिले
पेड़ आंधी में ऐसे हिले


हमको चलना भी तो आ गया
पांव पत्थर पे जब से छिले


चोट-दर-टोट खाकर हंसे
खत्म होंगे न ये सिलसिले


अपनी ही ग़फलतों में रहे
कद्रदानों से कैसे गिले


हम थे नीरव मुखर हो गए
आप जबसे हैं हमसे मिले।


पं. सुरेश नीरव
 

1 comment:

Neelesh K. Jain said...

Suresh ji

'Tute kile' achcha observation hai!
Pahle aapki nigaah paini thi ab chaini ho gayi hai ...
aapka.
Main Mumbai mein Sr. creative Consultant hoon kabhi mumbai aana ho to milna ho jayega. Aapke baare mein Ashok Chakradhar ji se Allahabad mein ek baar baat huyee thi.
neelesh jain