मकबूलजी अहमद फराज की ग़ज़ल बहुत धांसू है। और इन शेरोंके तो कहने ही क्या है-
डूबते डूबते, कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं, कोई तो साहिल पे उतर जाएगा।
ज़ब्त लाज़िम है, मगर दुःख है क़यामत का फ़राज़
ज़ालिम अबके भी ना रोया तो मर जाएगा।
आपके उम्दा चयन और आपकी नियमितता को सलाम इंडिया।
पं. सुरेश नीरव
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