तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है।
तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है।
आग का क्या है, पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है।
सच तो ये है, फूल का दिल भी छलनी है
हंसता चेहरा, एक बहाना लगता है।
पाँव न बांधे, पंछी के पर बाँध दिए
आज का बच्चा कितना सयाना लगता है।
मंज़र भोपाली
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
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