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Tuesday, January 26, 2010

हंस के बोला करो, बुलाया करो

गणतंत्र दिवस की सभी ब्लॉगर बांधवों, पाठकों\ दर्शकों को शुभकामनायें। आज अब्दुल हमीद अदम की एक ग़ज़ल पेश है।
हंस के बोला करो, बुलाया करो
आपका घर है, आया जाया करो।

मुस्कराहट है हुस्न का ज़ेवर
रूप बढ़ता है, मुस्कराया करो।

हद से बढ़कर हसीन लगते हो
झूटी क़समें जरूर खाया करो।

हुक्म करना भी इक सखावत है
हमको ख़िदमत कोई बताया करो।

बात करना भी बादशाहत है
बात करना न भूल जाया करो।

ताकि दुनिया की दिलकशी न घटे
नित नए पैराहन में आया करो।

कितने सादा मिज़ाज हो तुम अदम
उस गली में बहुत न जाया करो।
मृगेन्द्र मक़बूल

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