इस ब्लॉग पर आने वाले समस्त और आदरणीय नीरव जी [यदि वो विदेश में रहकर लोक मंगल को पढ़ रहे हैं] को में बता दूँ कि विगत पच्चीस दिनों से ठिठुरती दिल्ली में था, कार्यालयीन काम से । लेकिन इसे में अपना दुर्भाग्य ही कहूँगा कि उनके दर्शन ना कर सका । वे विदेश में हिंदी साहित्य की पताका फहराने में लगे हैं । हमें उन पर नाज़ है ।
साथियो ! प्रतिष्ठित वीकली 'शुक्रवार' पत्रिका ५ फरवरी २०१० के अंक में कविता सेक्शन में उनकी उम्दा तीन 'ग़ज़लें' पढ़ने को मिली । बेहतरीन..... लाजवाब ।
लोक-मंगल के मेरे साथियो, विगत १५ जनवरी २०१० की 'शुक्रवार' अंक में 'मेरी दो कवितायें' कविता सेक्शन में प्रकाशित हुई थीं । दिल्ली से लौटने के बाद व्यस्तता बहुत है । फिर कभी उन कविताओं को लोक-मंगल के माध्यम से आप तक पहुचाऊंगा ।
इसी ब्रह्मवाक्य के साथ कि 'ये वक़्त भी गुज़र जाएगा' और उनसे [नीरव जी से] फिर कभी मुलाक़ात होगी ।
[] राकेश 'सोहम'
No comments:
Post a Comment