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Sunday, March 7, 2010

फिर छेड़ी रात बात फूलों की

आज मख्दूम मोईनुद्दीन की एक प्रसिद्द ग़ज़ल पेश है। ये ग़ज़ल फिल्म बाज़ार में भी गाई जा चुकी है।
फिर छेड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की।

फूल के हार, फूल के गज़रे
शाम फूलों की, रात फूलों की।

आपका साथ साथ फूलों का
आपकी बात बात फूलों की।

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की।

नज़रें मिलती है, जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की।

ये महकती हुई ग़ज़ल मख्दूम
जैसे सहरा में रात फूलों की।
मृगेन्द्र मक़बूल

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