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Wednesday, March 3, 2010

हास्य ग़ज़ल

 मुद्दतों बाद गज़क खस्ता नज़र आई है
लार टपके न तो ये लार की रुसवाई है
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हम वो दीवाने हैं जो रोज़ पिटा करते हैं
चीख भी निकले तो कहें प्यार की शहनाई है
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कल जिसे छेड़ा वो रजामंद हुई शादी पर
खेल ही खेल में  मेरे जान पर बन आई है
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कर के बरबाद घर था बसाया जिसने
फौज बच्चों की लिए घर पे मेरे आई है
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 उसने निचोड़ी हैं झटक के यूं जुल्फें अपनी
मंथ में जून के बर्फीली लहर आई है
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पूरे महीने की  लुटाकर कमाई हमने नीरव
होकर कंगाल मोहब्बत की सजा पाई है।
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पं. सुरेश नीरव

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