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Wednesday, September 8, 2010

ब्रह्मावतार राम




पंडित सुरेश नीरव ने नैमिशारन्य के अर्थ व परिभाषा से लेकर जहाँ अनेक विचित्र और दुर्लभ जानकारियों से अवगत कराया है वहीँ उन्होंने अदभुत कथाओं से भी हमें द्रष्टिपात कराया है। ऐसी ही एक विचित्र कथा जो अब तक आपने सुनी ही नहीं होगी का रसपान कराया है। सच है कि नीरवजी ने ऐसी अलौकिक कथा कहकर सबको चकाचौंध कर दिया है। नैमिशारन्य का महत्त्व तो सभी युगों में रहा है। यह कथा त्रेतायुग की हैजिसमें पंडितजी ने बताया है कि एक बार मनु और उनकी धर्मपत्नी सतरूपा ने नैमिशारन्य में पच्चीस हजार वर्ष तक कठिन तपस्या की थीउनकी इस अप्रितम साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनसे वर मांगने के लिए कहा। मनु महाराज ने ब्रह्माजी को अपने यहाँ पुत्ररूप में जन्म लेने के लिए वरदान माँगा। तब ब्रह्माजी ने मनु को वरदान देते हुए कहा कि त्रेतायुग में मैं तुम्हारी यह इच्छा पूरी करूँगा। तुम्हारी पत्नी सतरूपा कौशल्या बनेगी और तुम दशरथ। तब मैं राम के रूप में तुम्हारे राज्य अयोध्या में पुत्ररूप में जन्म लेकर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करूँगा। समय आने पर ब्रह्माजी ने भगवान राम के रूप में अयोध्या में अवतार लिया। सर्वमान्य है कि पंडित सुरेश नीरव सचाई में एक विद्वान्, शब्दपारिखीऔर पंडित हैं। उन्होंने अरण्य पर एक विशिष्ट शोध करके जन मानुष को आश्चर्यचकित कर दिया है। यह उनकी विद्वतता एवं पांडित्यता का ही दिग्दर्शन है जो हमें एक जीवंत दार्शनिकता से अवगत करा रहे हैं। मैं ऐसे मनीषी, सिद्धपुरुष, ऋषिपुत्र एवं पंडित को बार-बार नमन करता हूँ। जय लोकमंगल।

भगवान सिंह हंस

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