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Thursday, October 28, 2010

ट्रेन बस ट्राम ही ज़िंदगी हो गयी।


व्यर्थ के काम ही ज़िंदगी हो गयी
दर्द के नाम ही ज़िंदगी हो गयी
नाम जब से दिया है स्वयं को पथिक
ट्रेन बस ट्राम ही ज़िंदगी हो गयी।
अरविंद पथिक

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