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Tuesday, October 12, 2010

विचारों की फुहारों से ब्लाग को नहला दिया।

जयलोकमंगल-जयलोकमंगल-जयलोकमंगल-जयलोकमंगल-जयलोकमंगल-जयलोकमंगल-जयलोकमंगल-
जयलोकमंगल में आज एक नए सदस्य के स्वागत में सभी साथियों ने बहुत कुछ लिखा और खूब लिखा। नए सदस्य ने भी अपने विचारों की फुहारों से ब्लाग को नहला दिया। यह इस बात का सबूत है कि अभिव्यक्ति का सुख उपलब्ध करने के लिए हर चेतन आत्मा एक अनकही छटपटाहट से मुसलसल गुजरती है। और जहां उसे कहने का मौका मिलता है एक अद्भुत आनंद की उसे अनुभूति होती है। यह आनंद ही बुद्ध की देशना है। महावीर की वाणी है। भगवानसिंह हंस का भरत चरित है और प्रशांत योगी का य़थार्थ दर्शन है। विचारों की तमाम नदियां इस ब्लाग के समंदर में समाहित होती रहें इन रचनात्मक कामनाओं के साथ..
                                                 विनयावनत
                                                                      पंडित सुरेश नीरव
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जब हम असभ्य थे
अंधेरी गुफाओं में रहते थे
कपड़े नहीं पहनते थे
हमारा चेतनाबोध कितना परिपक्व था
हम पशु-पक्षियों की भाषा भी समझ लेते थे
आज हम सभ्य हैं
नीओन लाइट में रहते हैं
अंतरिक्ष में उड़ते हैं 
मगर कितने बौने और कदहीन हो गए हैं कि
आदमी होकर आदमी की भाषा नहीं समझ पाते।
सुरेश नीरव
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