
यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Monday, October 25, 2010
कम्प्यूटर वाइरल की चपेट में
एक दिन मेरा कम्प्यूटर वाइरल की चपेट में आ गया था। उसका चेक अप कराया, दवा दिलाई। अब ठीक है। काम भी कर रहा है। आदरणीय हीरालाल पाण्डेयजी की पोस्ट बहुत अच्छी लगी, बहुत-बहुत बधाई एवं नमन। प्रशांत योगीजी की पोस्ट बहुत ही बेहतरीन है यह मनुष्य जीवन दर्शन का यथार्थ है। रे मनुष्य! जब तेरे पास रखने की जगह ही नहीं हैतो काहे को इस माया मोह में पड़ा है तू। यहाँ तक कि और तो और तेरे कफन में भी जेब नहीं है। अपितु वह कफ़न ही उसकी जेब बन जाता है। वह है ही उस कफ़नरुपी जेब में रख दिया जाता है। रे मनुष्य! जब तू उस कफ़नरुपी जेब रख दिया जाता है तो तू खाली हाथ होता है। उस समय तेरी माया- मोह , प्यारे-दुलारे आदि सब छूट जाते हैं। और तो उस कफ़नरुपी जेब के साथ ही पञ्चतत्व में मिल जाता है। ये सब तेरी ममता मोह पीछे छूट जाती है। इसलिए ये सब तू छोड़। प्रभु में मन लगा। यही तो यथार्थ दर्शन है। अतः योगीजी का आलेख -कफ़न में जेब नहीं होती - बहुत ही ज्ञानवर्धक है, अच्छा लगा। बधाई। नमन। आदरणीय नीरवजी ने जो उस पर टिप्पणी की, काबिले तारीफ़ है। आपको बहुत बहुत बधाई। पालागन।


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