आदरणीय कर्नल विपिन चतुर्वेदीजी
बहुत दिनों बाद आप ब्लाग पर आए मगर बेहतरीन गीत के साथ। आपने गीत से पहले जो मानसिक स्थिति का चित्रण किया है उससे थोड़ी चिंता हुई है। आपको आपकी ही पंक्तियां समर्पित कर रहा हूं.. ईश्वर आपको दीर्घायु करे।लाज की बाधा न वाणी लाँघ पाई ।
थे सबल संकेत, पर पलकें प्रबल थीं
झुक गयी जो पुतलियों पर सींच जल थी।
समय था मानो समंदर बन गया था, हर निमिष तट से परे होता गया मैं।
विपिन चतुर्वेदी
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