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Friday, October 29, 2010

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य ---पेज ७३६

राम का आस्तिक मत -


सुरेश कीन्ह शत अनुष्ठाना। स्वर्गलोक विमल मिला स्थाना। ।
महर्षियों की उग्र तपस्या । दिव्यलोक पाय हल समस्या । ।
राम मुनि जावालि के नास्तिक मत का खंडन करते हुए कहते हैं कि इंद्र ने सौ यग्य अनुष्ठान किए थे। उनको स्वर्गलोक जैसा पवित्र स्थान मिला। महर्षि भी कठोर तप करते हैं। वे भी अपनी समस्या का समाधान करके दिव्यलोक प्राप्त करते हैं।

दोहा- विप्र के शूल-से वचन, सह न सके श्री राम।
कटु वचनों की भर्त्सना , करते पुनि अभिराम। ।
श्रीराम विप्र के शूल-से वचनों को नहीं सह सके। वे मुनि जावालि के कटु वचनों की पुनः भर्त्सना करते हैं।
पराक्रम, दया,सत्य व धर्मा। सर्वत्र मधुर वचन सुकर्मा। ।
देवगन, द्विज अतिथि की पूजा। यही सर्व सन्मार्ग, न दूजा। ।
हे मुनि! पराक्रम, दया, सत्य, धर्म, मधुर वचन, सुन्दर कार्य आदि सर्वत्र शोभित होते हैंऔर देव, द्विज और अतिथियों की पूजा ही सच्चा सन्मार्ग है। ऐसा और कोई पथ नहीं है।
रचयिता - भगवान सिंह हंस
प्रस्तुतकर्ता - योगेश विकास

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