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Monday, November 8, 2010

पतवारों का तूफानों से समझौता


पतवारों का तूफानों से समझौता है,
जयचंदों ने गोरी को भेजा न्योता है,
सारे रक्छक मस्त पडे बेसुध सोये हैं
कर्णधार सब सुरा सुंदरी में खोये हैं
कलमकार सत्ता के चारण बन ऐंठे हैं
लोकतंत्र की शाखाओं पर उल्लू बैठे हैं
केवल क्रिकेट ही है कहानी घर घर की
कुंठित अवसादित है जवानी हर घर की
देशभक्ति की बातें फिल्मी माल हुईं
प्रतिभाहीन नग्नताएं वाचाल हुईं
भारत का अस्तित्व मिटा जाता है
इंडिया शाइनिग करता मुस्काता है
आज नहीं गांधी न जवाहर लाल यहां
खोये प्यारे बाल,पाल औ लाल कहां?
नहीं गर्जना करते प्यारे नेताजी
करते हें नेत्रत्व फिल्म अभिनेताजी;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

अरविंद पथिक

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