राम चरणपादुका सुहायीं। दर्पण-सा निर्मल तन पायीं। ।
राम मुद्रा रम्यता पायी। खडाऊं में देती दिखायी। ।
श्री भरत के सिर पर राम की चरणपादुका बड़ी सुहावनी लग रही हैं। उनका निर्मल तन दर्पण-सा दमक रहा है। राम की सुन्दर मुद्रा पादुकाओं में दिखायी दे रही है।
सोहे दोऊ रूप अनूपा। दिग्विजयी लौटे जस भूपा। ।
छात्र लहराए नभसमीरा। अलंकृत बतिया रहा बीरा। ।
भरतजी के दोनों रूप-भ्रात्र रूप और भक्तिरूप बड़े सुन्दर लग रहे हैं। राजा की विजय की भांति भरत वापिस अयोध्या लौटते हैं। अवध का कोविदार छत्र आकाश और वायु में लहरा रहा है। भाई शत्रुघ्न आभूषित होकर भरतजी से बतिया रहा है।
रचयिता- भगवान सिंह हंस
प्रस्तुति -योगेश विकास
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