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Tuesday, November 16, 2010

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य -पेज ७३६

कैकेयी-एक विदुषी पटरानी-
पग में पायजेब झंकारा। कैकेयी लसित अलंकारा। ।
अद्वितीय सुन्दरी त्रिलोका। दशरथ भवन नहीं अब शोका। ।
उसके पैरों में पायजेब झंकार रही हैं। रानी कैकेयी अलंकारों से आभूषित है। वह त्रिलोक में अद्वितीय सुंदरी नारि है । कैकेयी के आने से राजा दशरथ के महल में अब कोई दुःख नहीं है।
सुम्रदुल विदुषी सहिष्णु नारी। अवध भवन में चहुँ उजियारी। ।
संध्या वन्दना सु व्रतधारी । दया धर्म सहज सदाचारी । ।
क्योंकि राजमहल में कैकेयी म्रदुल, विदुषी और सहिष्णु रानी है। अब अवध भवन में चारों ओर उजाला ही उजाला है। महारानी कैकेयी संध्या-वन्दना करने वाली, व्रत धारण करने वाली, दयालु, धर्मपरायण, सहज और सदाचारिणी नारि है।
वीरांगना सारथि मनीषा। सह्रदया सरला जस शीशा। ।
राज काज में कुशल प्रवीना। राज परामर्श समीचीना। ।
वह वीरांगना, कुशल सारथि, मनीषी, सह्रदया , सरला और शीशा की तरह साफ है। महारानी कैकेयी राजकाज में बहुत कुशल एवं प्रवीण है। वह राज्य हेतु राजा दशरथ को भी सलाह एवं परामर्श देती है।

रचयिता-भगवान सिंह हंस
प्रस्तुति -अमित

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